बिहार चुनाव 2025 : जनता के मिज़ाज और बदलती राजनीतिक हवा
✍️ मुकेश तिवारी की कलम से
बिहार की राजनीति हमेशा से देश की राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाती रही है। यहाँ का हर चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों, जातीय गठजोड़ों और जनभावनाओं की नई परिभाषा तय करता है। 2025 का विधानसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं दिख रहा।
1️⃣ जनता के मुद्दे — रोज़गार, बिजली और पलायन फिर केंद्र में
हाल के सर्वेक्षणों और जनसंवादों में सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार और पलायन का सामने आया है। युवाओं में सरकारी नौकरियों को लेकर निराशा है और निजी क्षेत्र में अवसरों की कमी का असर भी साफ दिखता है।
बिजली, सड़कों और शिक्षा व्यवस्था में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में विकास की रफ्तार अभी भी धीमी है।
2️⃣ राजनीतिक समीकरण — गठबंधन की राजनीति पर सबकी नज़र
बिहार की राजनीति में गठबंधन ही जीत की कुंजी होती है। एनडीए और महागठबंधन, दोनों ही अपने पुराने समीकरणों को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश में हैं। छोटे दलों की भूमिका इस बार निर्णायक हो सकती है — खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ जातीय संतुलन बहुत नाज़ुक है।
3️⃣ युवा और महिला वोटर की नई सोच
इस चुनाव में युवा और महिला मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं। सोशल मीडिया और शिक्षा के विस्तार ने सोच और प्राथमिकताओं को बदला है। अब जाति से ज़्यादा ध्यान रोजगार, शिक्षा और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर है।
4️⃣ विकास बनाम नेतृत्व — असली टकराव यहीं है
जहाँ एक ओर सत्ता पक्ष विकास के नाम पर अपनी उपलब्धियाँ गिना रहा है, वहीं विपक्ष नेतृत्व के चेहरे और विज़न को लेकर चुनौती पेश कर रहा है। बिहार की जनता अब वादों से ज़्यादा नतीजे देखना चाहती है।
निष्कर्ष
बिहार का चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं, बल्कि लोकतंत्र की गहराई का प्रतीक है। जनता अब जागरूक है और सवाल पूछना जानती है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन-सा दल जनता के असली मुद्दों पर खरा उतरता है — और कौन सिर्फ नारों तक सीमित रह जाता है।
✍️ मुकेश तिवारी
(राजनीतिक विश्लेषक एवं स्वतंत्र लेखक)