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रेत कारोबारी कर रहे महानदी की छाती छलनी, मजदूरों की जगह नियम विरुद्ध माउंटेन चैन मशीन का हो रहा उपयोग......खनिज विभाग में शासन के बजाय चलता है अपना कानून

रेत कारोबारी कर रहे महानदी की छाती छलनी, मजदूरों की जगह नियम विरुद्ध माउंटेन चैन मशीन का हो रहा उपयोग

खनिज विभाग में शासन के बजाय चलता है अपना कानून

कसडोल । बलौदाबाजार कलेक्टर रजत बंसल के कड़ी फटकार के बाद सभी विभागों में हो रहे अनैतिक कारोबार पर कुछ हद तक लगाम लगा है। इसी के तहत अवैध रेत उत्खनन करने वाले रेत घाटों पर लगाम लगा है वहीं दूसरी तरफ परमिट धारी रेत घाटों पर अवैध तरीके से नियम विरुद्ध उत्खनन धड़ल्ले से जारी है। वैसे तो रेत घाट का परमिट जारी करने से पहले प्रशासन द्वारा नियम कानून के तहत कुछ शर्तें रखी जाती हैं। पर्यावरण सहित गरीब मजदूरों के हित को ध्यान में रखते हुए रेत घाटों पर वाहन मशीनों के बजाय मजदूरों से भरे जाने की बात कही जाती है, पर वह केवल कागजों तक सीमित रह जाता है।हकीकत कुछ और ही होता है। जो जमीन पर दिखाई नहीं पड़ता है।यह सिलसिला प्रायः सभी रेत घाटों पर आसानी से देखा जा सकता है।सभी घाटों पर केवल चैन माउंटेन मशीन का ही कमाल देखने को मिलता है।साथ ही रेत भरे हाइवा को ढांकना भी मुनासिब नहीं समझते। रेत भरे खुला हाइवा धड़ल्ले से राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलते देखा जा सकता है।इसके बावजूद खनिज विभाग नियम का हवाला पत्रकारों को देते हुए सही ठहराने की असफल कोशिश करते हैं।
          आज ग्राम पंचायत पुटपुरा के आश्रित ग्राम पैरागुड़ा के रेट घाट पर हमारे प्रतिनिधि ने जायजा लिया। वस्तु स्थिति की जानकारी लेने खनिज निरीक्षक भूपेन्द्र भक्त से मो फोन पर बात की गई, इसपर उनसे जवाब मिला कि पैरागुड़ा रेत घाट वैध है और नियम के तहत उत्खन हो रहा है।जब चैन माउंटेन मशीन के बारे मे पूछा गया तो जवाब चौंकाने वाला था।अपनी कमजोरी छिपाने के लिए एकदम कलेक्टर महोदय पर डालते हुए कहा कि चैन माउंटेन मशीन से रेत उत्खनन की मौखिक अनुमति कलेक्टर महोदय ने दी है। इस पर कलेक्टर रजत बंसल से मो फोंन से संपर्क की गई किन्तु रिसीव नहीं करने से जानकारी नहीं मिल सका।इस तरह कहा जा सकता है कि खनिज विभाग चाहे जो करले वही नियम हैयहां शासन के नियम के बजाय विभाग का नियम सर्वोपरि है।वो चाहे जो करले वही सत्य है।इसका कारण यह भी है कि सरकार में बैठे लोगों के नुमाइंदे ही रेत खदान संचालित कर रहे हैं।इसीलिए यह सब हो रहा है।कहा भी गया है कि "जब सइयां भए कोतवाल तो डर काहे का" यहाँ यही बात चरितार्थ हो रहा है।पत्रकार गण चाहे जितना छापले, कार्रवाई तो हमे ही करना है।बस ऊपर वाले साथ हो।यह शब्द रेत ठेकेदारों के गुर्गों से आये दिन सुनने में आता है।और सही बात है एक पत्रकार तो सिर्फ समाचार छाप सकता है, कार्रवाई तो नहीं कर सकता वो तो विभाग पर निर्भर है।

Mukesh tiwari

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